पूछो ना मुझसे मैं कैसी हूँ,
कभी तो मुझसे मेरी खैरियत पूछो।
सच में खुश हूँ या मुखौटा है कोई,
पूछो ना, तुम क्यों नही पूछते कुछ भी।
क्यों तुमसे इतना बहस करती हूँ, क्या ये सोचा कभी,
क्यों इतनी शिकायतें है मुझे, क्या ये टटोला कभी,
हँसते हुए इस चहरे के पीछे, दिल में क्या है, क्या ये पूछा कभी,
न सोचा, न ही टटोला और ना ही पूछा कभी,
अब तो पूछो ना, तुम क्यों नही पूछते कुछ भी।
पूछो कभी कि दिन कैसा रहा मेरा,
पूछो कभी कि मेरा मन क्या चाहता है,
पूछो कभी कि मैं इतनी शांत क्यूँ हूँ,
जब अंदर ये इतना शोर भरा है ।
पूछो कभी कि इतनी भीड़ में भी क्यूँ मैं अकेली हूँ,
पूछो ना, तुम क्यों नही पूछते कुछ भी।
मैं थक गई हूँ खुद से बात कर कर के,
मैं थक गई हूँ मन की बात लिख लिख के,
अब सिर्फ तुमसे बात करने को जी चाहता है,
अब सिर्फ तुमसे मिलने की इच्छा रहती है,
जानती हूँ कि तुम भी यही चाहते हो,
जानती हूँ कि तुम भी यही मानते हो,
तो निकालो ना समय थोड़ा तुम भी
और आओ ना मेरी तरफ एक कदम बढ़ाकर तुम भी,
और पूछो ना जो पूछना है, कभी। ।